92 की उम्र में लड़ा अयोध्या का धर्मयुद्ध, दलीलों से मुस्लिम पक्ष को किया चित

उम्र को धता बताते हुए अयोध्या मामले में रामलला विराजमान की ओर से पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता के.पराशरण ने शनिवार उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राहत की सांस ली होगी जिन्होंने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि उनके जीतेजी रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं।

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उम्र के नौ दशक पार करने के बावजूद पूरी ऊर्जा से अयोध्या मामले में अकाट्य दलीलें रखने वाले पराशरण को भारतीय वकालत का ‘भीष्म पितामह’ यूं ही नहीं कहा जाता। उच्चतम न्यायालय ने अगस्त में जब अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई का फैसला किया तो विरोधी पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए उनके लिये यह मुश्किल होगा लेकिन 92 बरस के पराशरण ने 40 दिन तक घंटों चली सुनवाई में पूरी शिद्दत से दलीलें पेश की।



उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति के फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ करते हुये केन्द्र को निर्देश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिये किसी वैकल्पिक लेकिन प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए।

पराशरण को भारतीय इतिहास, वेद पुराण और धर्म के साथ ही संविधान का व्यापक ज्ञान 

राम मंदिर का मामला उन्होंने यूँ ही नहीं लड़ा। उन्हें भारतीय इतिहास, वेद-पुराण और धर्म का वृहद ज्ञान है। यही कारण है कि सुनवाई के दौरान भी वह अदालत में स्कन्द पुराण के श्लोकों का जिक्र कर राम मंदिर का अस्तित्व साबित करते रहे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जिरह की शुरुआत ही ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ श्लोक के साथ की थी। वाल्मीकि रामायण में ये बात श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण से कही थी। जहाँ भी आस्था का मामला हो, जहाँ भी धार्मिक विश्वास का मामला हो, वहाँ धर्म की ओर से, श्रद्धा की ओर से, पराशरण ही वकील होते हैं। उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ जाकर रामसेतु बचाने के लिए केस लड़ा।



सबरीमाला मामले में भी श्रद्धालुओं की तरफ़ से पराशरण ही वकील थे। पराशरण मजाक-मजाक में वकालत को अपनी दूसरी पत्नी बताते हैं। 24 घंटे में 18 घंटे वकालत सम्बन्धी कामकाज और अध्ययन में बिताने वाले पराशरण ने बताया था कि वो अपनी पत्नी से भी ज्यादा समय वकालत को देते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज संजय किशन कॉल ने अपनी पुस्तक में उनके लिए ‘पितामह ऑफ इंडियन बार’ शब्द प्रयोग किया। वकालत के कुछ छात्रों ने मिल कर के पराशरण पर ‘Law and Dharma: A tribute to the Pitamaha of the Indian Bar’ नामक पुस्तक भी लिखी है, जिसमें उनके बारे में लिखा गया है।

स्कन्ध पुराण के श्लोकों के जरिए राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की

उन्होंने स्कन्ध पुराण के श्लोकों का जिक्र करके राम मंदिर का अस्तित्व साबित करने की कोशिश की। पराशरण ने सबरीमाला मंदिर विवाद के दौरान एक आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश नहीं देने की परंपरा की वकालत की थी। राम सेतु मामले में दोनों ही पक्षों ने उन्हें अपनी ओर करने के लिए सारे तरीके आजमाए लेकिन धर्म को लेकर संजीदा रहे पराशरण ने सरकार के खिलाफ गए। ऐसा उन्होंने सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट से रामसेतु को बचाने के लिए किया।

पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाजे जा चुके पराशरण

उन्होंने अदालत में कहा, "मैं अपने राम के लिए इतना तो कर ही सकता हूँ।" नौ अक्टूबर 1927 को जन्में पराशरण पूर्व राज्यसभा सांसद और 1983 से 1989 के बीच भारत के अटार्नी जनरल रहे । पद्मभूषण और पद्मविभूषण से नवाजे जा चुके पराशरण को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमिटी में शामिल किया था । इतिहास में जब भी अयोध्या मसले पर बरसों तक चली कानूनी लड़ाई का जिक्र होगा तो पराशरण का नाम सबसे ऊपर लिया जायेगा ।

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