राम मंदिर के लिए बलिदान देने वाले कोठारी बंधुओ की कहानी ,



ये 1990 का वर्ष था. 21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में श्रीराम भक्त कारसेवक जुट चुके थे. सब श्रीराम जन्मभूमि की ओर जाने की तैयारी में थे. जन्मभूमि के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी. अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे. इनका नेतृत्व कर रहे थे अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता. श्रीराम जन्मभूमि के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे. इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद  कोठारी (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के दो भाइयों ने भगवा झंडा फहराया था.

kothari brothers ayodhya
कोठारी भाइयो की बहन जो शरद और राम कोठारी की फाइल फोटो दिखा रही है
मुलायम सिंह यादव उस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री थे. उनका साफ निर्देश था कि बाबरी मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए.  लेकिन इसके बाद भी 5000 से ज्यादा श्रीराम भक्त कारसेवक श्रीराम जन्मभूमि तक पहुँच गये. शरद कोठारी तथा राम कोठारी नामक दोनों भाई गुंबद पर चढ़ गये तथा जयश्रीराम का उद्घोष करते हुए बाबरी पर भगवा फहरा दिया. कोठारी बंधुओं द्वारा बाबरी पर भगवा फहराते ही अयोध्या जयश्रीराम के नारों से गूँज उठी. फिर वो हुआ जिसका अंदाजा भी न था.

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बस से बैरिकेडिंग तोड़कर विवादित स्थल तक पहुंचे थे कारसेवक

साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था. इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था. इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया. इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया. बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी. बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए.

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कोठारी बंधु 200 किलोमीटर पैदल चलकर अयोध्या पहुंचे

कोठारी बंधुओं के मित्र राजेश अग्रवाल के अनुसार, शरद और रामकुमार कोठारी 22 अक्टूबर की रात को कोलकाता (तब कलकत्ता) से रवाना हुए थे। बनारस आकर रहने लगे, सरकार ने ट्रेनों और बसों को रोक दिया था। इसलिए वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर शहर आए। इसके बाद यहां से जाने वाले रास्ते को भी बंद कर दिया गया। लेकिन दोनों ने 25 अक्टूबर को अयोध्या की ओर चलना शुरू कर दिया। लगभग 200 किलोमीटर चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुंचे। शरद कोठारी 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाले पहले व्यक्ति थे। फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ गया। दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया

2 नवंबर को दोनों भाइयों को लगी गोली, गई जान

किताब 'अयोध्या के चश्मदीद' के अनुसार 30 अक्टूबर को गुंबद पर झंडा लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे. जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए. लेकिन थोड़ी देर बाद जब वे दोनों बाहर निकले तो पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए. दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.


घर से खींच मारी गोली

2 नवंबर का दिन। "युद्ध में अयोध्या किताब" के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।

4 नवंबर को अंतिम संस्कार में उमड़े थे हजारों लोग

4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया. उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे. दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे. शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है. मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे. दोनों भाइयों के अंतिम संस्कार के करीब एक महीने बाद ही 12 दिसंबर को इनकी बहन की शादी होने वाली थी.

भाइयों की याद में पूर्णिमा उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। राम और शरद की अब स्मृतियॉं ही शेष हैं और अपनी जमीन पाने की लड़ाई रामलला सुप्रीम कोर्ट में लड़ रहे हैं। रवींद्र जैन के शब्दों में कहे तो ये कुछ ऐसा ही है,

श्रीराम निरंतर यज्ञ करें
लक्ष्मण भूमंडल पर विचरें
दोनों को सिद्धि अभी पानी है…

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