तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर , इस मंदिर का खजाना अभी तक एक रहस्य बना हुआ है

Padmanabhaswamy Temple image

तिरुवनंतपुरम के मध्य में बना विशाल किले की तरह दिखने वाला पद्मनाभ स्वामी मंदिर भक्तों के लिए महत्वपूर्ण आस्था स्थल है। 


लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा

यहां भक्तों को अलग-अलग दरवाजों में से भगवान विष्णु की लेटी हुई प्रतिमा के दिव्य दर्शन मिलते हैं। इस मूर्ति में शेषनाग के मुंह इस तरह खुले हुए हैं, जैसे शेषनाग भगवान विष्णु के हाथ में लगे कमल को सूंघ रहे हों। मूर्ति के आसपास भगवान विष्णु की दोनों रानियों श्रीदेवी और भूदेवी की मूर्तियां स्थापित हैं। इस मूर्ति में भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल पर जगत पिता ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित है। मुख्य कक्ष जहां विष्णु भगवान की लेटी हुई मुद्रा में प्रतिमा है, वहां कई दीपक जलते रहते हैं, इन्ही दीपकों के उजाले से भगवान के दर्शन होते हैं।

स्वर्ण जड़ित गोपुरम

मंदिर में अत्यंत कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के साथ- साथ यहां श्रद्धालुओं के प्रवेश के नियम भी हैं। पुरुष केवल धोती पहनकर ही प्रवेश कर सकते हैं और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य है। अन्य कि सी भी लि बास में प्रवेश यहां वर्जित है। मंदिर में एक स्वर्ण स्तंभ बना हुआ है, जिसकी सुंदरता को श्रद्धालु एकटक निहारते रहते हैं। मंदिर का स्वर्ण जड़ित गोपुरम सात मंजिल का, 35 मीटर ऊंचा है। कई एकड़ में फैले मंदिर में महीन कारीगरी भी देखते ही बनती है।


समुद्र किनारे स्नान 

श्री पद्मनाभ मंदिर की एक विशेषता है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु की शयनमुद्रा, बैठी हुई और खड़ी मूर्तियां स्थापित की गई हैं। गर्भगृह में भगवान विष्णु की शयनमुद्रा में मूर्ति का शृंगार फूलों से किया जाता है। भगवान विष्णु की खड़ी मूर्ति को उत्सवों के अवसर पर मंदिर से बाहर ले जाते हैं। वर्ष में दो बार धार्मिक समारोह होता है। इस समारोह में ‘आउत’ (पवित्र स्नान) किया जाता है। इस समारोह में भगवान विष्णु , नरसिंह और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को नगर के बाहर समुद्र किनारे पर ले जाकर स्नान कराया जाता है।

मंदिर का इतिहास 

मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा-अर्चना की थी। मान्यता है कि मंदिर की स्थापना 5000 साल पहले कलयुग के प्रथम दिन हुई थी, लेकिन 1733 में त्रावनकोर के राजा मार्तण्ड वर्मा ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। यहां भगवान विष्णु का श्रृंगार शुद्ध सोने के आभूषणों से किया जाता है।

तहखाने में छिपा है क्‍या राज

सदियों से बंद केरल के श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर के नीचे बने पांच तहखानों को जब खोला गया तो वहां बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों के अलावा सोने के अकूत भंडार और प्राचीन मूर्तियां भी निकालीं गई। लेकिन छठे तहखाने के दरवाजे के आस पास भी जाने से लोग डरते हैं। जबकि इस बात का सभी को अंदाजा है कि इस छठे दरवाजे में दुनिया का सबसे ज्यादा खजाना इस दरवाजे के पीछे छुपा है।

तिरुवनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर

लेकिन जैसे ही इस मंदिर के छठे दरवाजे को खोलने की बात होती है, तो अनहोनी की कहानियों का जिक्र छिड़ जाता है। इस तहखाने में तीन दरवाजे हैं, पहला दरवाजा लोहे की छड़ों से बना है। दूसरा लकड़ी से बना एक भारी दरवाजा है और फिर आखिरी दरवाजा लोहे से बना एक बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है और उसे खोला नहीं जा सकता। दरअसल छठे दरवाजे में ना कोई बोल्ट है, और ना ही कुंडी। गेट पर दो सांपों के प्रतिबिंब लगे हुए हैं जो इस द्वार की रक्षा करते हैं। कहा जाता है इस गेट को कोई तपस्वी  'गरुड़ मंत्र' बोल कर ही खोल सकता है। अगर उच्चारण सही से नहीं किया गया, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। पहले भी गई लोग इस दरवाजे को खोलने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन सभी को मृत्यु के दरवाजे का मुंह देखना पड़ा।



सन् 1930 में एक अखबार में छपा एक लेख बेहद डरावना था। लेखक एमिली गिलक्रिस्ट हैच के अनुसार 1908 में जब कुछ लोगों ने पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने के दरवाजे को खोला तो उन्हें अपनी जान बचाकर भागना पड़ा क्योंकि तहखाने में कई सिरों वाला किंग कोबरा बैठा था और उसके चारों तरफ नागों का झुंड था। सारे लोग दरवाजा बंद करके जान बचाकर भाग खड़े हुए।

Padmanabhaswamy Temple

इस तहखाने के पीछे भी एक कहानी है। कहते हैं कि करीब 136 साल पहले तिरुअनंतपुरम में अकाल के हालात पैदा हो गए थे। तब मंदिर के कर्मचारियों ने इस छठे तहखाने को खोलने की कोशिश की थी और उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी थी। अचानक उन्हें मंदिर में तेज रफ्तार और शोर के साथ पानी भरने की आवाजें आने लगी थीं। इसके बाद उन्होंने तुरंत दरवाजे को बंद कर दिया था। यहां के लोगों का मानना है कि मंदिर का ये छठा तहखाना सीधे अरब सागर से जुड़ा है। अगर कोई खजाने को हासिल करने के लिए छठा दरवाजा तोड़ता है तो अंदर मौजूद समंदर का पानी खजाने को बहा ले जाएगा।

अनूठा स्‍थापत्‍य

समुद्र तट और हरी भरी पहाड़ियों के बीच बने पद्मनाभ स्वामी मंदिर का स्थापत्य देखते ही बनता है मंदिर के निर्माण में महीन कारीगरी का प्रयोग हुआ है। यह मंदिर पूर्वी किले के अंदर स्थित है और इसका परिसर बहुत विशाल है जिसका अहसास इसका सात मंजिला गोपुरम देखकर हो जाता है। केरल और द्रवि‍ड़ियन वास्तुशिल्प में निर्मित यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। पद्मा तीर्थम, पवित्र कुंड, कुलशेकर मंडप और नवरात्रि मंडप इस मंदिर सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देते हैं। करीब 260 साल पुराने इस मंदिर में केवल हिंदु ही प्रवेश कर सकते हैं। पुरुषों केवल अधोवस्‍त्र के तौर पर सफेद धोती पहनने की अनुमति है। मंदिर के प्रमुख दो वार्षिकोत्सव हैं एक दक्षिण भारत में पंकुनी के महीने में जो 15 मार्च से 14 अप्रैल तक होता है, और दूसरा ऐप्पसी के महीने  जो अक्टूबर से नवंबर में होता है।

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