aditya hridaya stotra pdf in hindi | aditya hrudayam stotram pdf

आदित्य हृदय स्तोत्र (हिंदी pdf) download


सूर्य 'आदित्य हृदय स्तोत्र' aditya hrudayam (hridaya) stotram pdf गीता प्रेस इन हिंदी अनुवाद सहित संस्कृत संपूर्ण पाठ पीडीऍफ़ free download


आदित्य हृदयं स्तोत्रं संस्कृत, हिंदी में
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आदित्य हृदयं स्त्रोतम पाठ के लाभ :

आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित करने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। 

इसके आलावा इसके पाठ से मानसिक कष्ट, हृदय रोग, तनाव, शत्रु कष्ट और असफलताओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है। आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों, कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति कराने वाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, उर्जा और प्रतिष्ठा बढाने वाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है। 

सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार “आदित्य हृदय स्तोत्र” अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्री राम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था। इस स्तोत्र में सूर्य देव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजयी मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है।

आदित्य हृदय स्तोत्र 

सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर विनियोग मन्त्र पढ़ें। 

ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्य ऋषिर्निष्टुप् छन्दः, आदित्यहृदयभूतो भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः। 

अब आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ आरम्भ करें।
 
ततो युद्ध परिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्  ।।
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवांस्तदा ।।

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम। येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसे ।।
आदित्यह्रदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्। जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम ।।

सर्वमंगल मांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्। चिंता शोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुक्तमम् ।।
रश्मिमन्तं  समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्। पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं  भुवनेश्वरम् ।।

सर्वदेवात्मको ह्योष तेजस्वी  रश्मिभावनाः। एष देवासुर देवासुरगणाँल्लोकान पाति गभस्तिभिः ।।
एष ब्रह्मा ब्रह्मा च विष्णुश्च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः। महेन्द्रो  धनदः  कालो यमः सोमो ह्यपाम्पतिः ।।

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः। वायुर्वहिनः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ।।
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान। सुवर्णसदृशो  भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ।।

हरिदश्वः सहस्त्रार्चि सप्तसप्तिर्मरीचिमान। तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंशुमान ।।
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोहस्करो रविः। अग्निगर्भोदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ।।

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुः सामपारगः। घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगम ।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः। कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ।।

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनाः। तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोस्तु ते ।।
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः। ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो  नमः।  नमो नमः सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नमः ।।
नमः उग्राय वीराय सारंगाय  नमो नमः। नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तु ते ।।

ब्रहमोशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे। भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ।।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने। क्रतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ।।

तप्तचामीकराभाय  हरये विश्वकर्मणे। नमस्तमोभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ।।
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः। पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ।।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः। एष चैवाग्निहोत्रं  फलं चैवाग्निहोत्रिणाम ।।
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च। यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ।।

एनमापत्सु क्रच्छेषु कान्तारेषु भयेषु च। कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघवः ।।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्। एतत्त्रिगुणितम् जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ।।

अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि। एवमुक्त्वा ततोगस्त्यो जगाम स यथागतम् ।।
एतच्छुत्वा महातेजा नष्टशोकोभवत् तदा। धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ।।

आदित्यं प्रेक्षय जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्। त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान ।।
रावणं प्रेक्ष्य ह्यष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्। सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेभवत ।।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्यं रामं मुदितमनाः परमं प्रह्यश्यमाण। निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ।।

।। श्री वाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे, अगस्त्प्रोक्तमादित्यहृदयस्तोत्रम सम्पुर्णम् ।। 

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