कूर्म पुराण क्या है?
अठारह पुराणों में कूर्म पुराण 15 वें स्थान पर आता है, सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने, कूर्म अवतार धारण करके इस पुराण को राजा इंद्रद्युम्न को सुनाया था ,पुनः भगवान कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र मंथन के समय, इंद्रादि देवताओं तथा नारद आदि ऋषिगणों से कहा, तीसरी बार नैमिषारण्य के द्वादश वर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत जी के द्वारा इस पुराण को सुनने का सौभाग्य 88000 ऋषियों को प्राप्त हुआ, भगवान कूर्म द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम कूर्म पुराण पड़ा है ।
इस पुराण में 17000 श्लोक है, इस पुराण में पुराणों के पांचो प्रमुख लक्षणों सर्ग ,प्रतिसर्ग, वंश ,मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन किया गया है।रोमहर्षण सूत जी द्वारा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रुप में आरंभ होने वाले इस पुराण में, सर्वप्रथम सूत जी ने पुराण के लक्षण एवं अठारह पुराणों के नाम की गणना करते हुए ,भगवान कूर्म की कथा की विवेचना की है ।
कूर्मावतार के प्रसंग में ही,लक्ष्मी जी की उत्पत्ति उनका महत्व, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युमन का वृतांत,इन्द्रद्युमन के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्णाश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा ब्रह्म के रूप में शिवत्व का प्रतिपादन किया गया है।
तदन्तर,सृष्टिवर्णन,कल्प,मन्वन्तर तथा युगों की कालगणना,वराह अवतार की कथा ,शिव पार्वती चरित्र, योगशास्त्र ,वामन अवतार की कथा, सूर्य ,चंद्र वंश वर्णन ,अनुसूया की संतति वर्णन तथा यदुवंश का वर्णन, चारों युगों का स्वभाव ,मोक्ष के साधन तथा हिंदू धर्म के अंतर्गत वैष्णव, शैव ,शाक्त का वर्णन किया गया है ,अपने प्रसारर के कारण कूर्म पुराण एक श्रेष्ठ पुराण है।
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