हिन्दू धर्म मे तिलक लगाने का क्या महत्व है ?
जहां तिलक लगाया जाता है वहां पिनियल ग्रंथि होना बताया है. यह वह स्थान है जहां दोनों आंखो का फोकल पांइट भी होता है.अगर हम वहां टच करते है तो वहां की सेन्सिविटी। चेतना जाग्रत होती है. यदि वहां कोई गीली वस्तु लगाई जाय तो वह कुछ आधिक समय तक चेतना रहेगी. अतः चंदन, केशर,सिंदूर, कुमकुम व हल्दी का तिलक इसी लिए लगाया जाता है. खाली पानी का भी लगाया जा सकता है. इसे धार्मिक आधार पर बुजुर्गों को।मेहमानों को।आत्मा को।व अतिथियों को स्वागत।श्रद्धा के लिये भी लगाया जाता है. अक्षत कभी क्षत नहीं होता अतः उनकी लंबी उम्र की कामना से अक्षत का स्तेमाल भी किया जाता है.
शास्त्रों में श्वेत चंदन, लाल चंदन, कुमकुम, विल्वपत्र, भस्म आदि से तिलक लगाना शुभ माना गया है पर आज के समय में मुख्य रूप से कुमकुम से ही तिलक किया जाता है । वैसे आपने देखा होगा कि कुमकुम के तिलक के साथ चावल का प्रयोग भी किया जाता है ।
माथे पर तिलक के साथ चावल क्यों लगाए जाते हैं ?
तिलक के बाद चावल लगाने के पीछे वैज्ञानिक कारण माना जाता है। कहा जाता है। तिलक लगाने से दिमाग में शाति एवं शीतलता बनी रहती है और चावल लगाने का कारण शुद्धता और पवित्रता के रूप में होता है। हिंदू धर्म में चावल को शुद्धता का प्रतीक माना गया है। चावल को हवन में देवताओं को चढ़ाया जाने वाला शुद्ध अन्न माना जाता है।
चावल को सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है धार्मिक अनुष्ठानों में चावल के प्रयोग से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। पूजा में कुमकुम के तिलक के ऊपर चावल के दाने इसलिए लगाए जाते हैं, ताकि हमारे आसपास जो भी नकारात्मक ऊर्जा उपस्थित हो, वह सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाए।
तिलक कितने प्रकार के होते है ?
- शैव - शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।
- शाक्त - शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।
- वैष्णव - वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं-
- लालश्री तिलक - इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।
- विष्णुस्वामी तिलक - यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।
- रामानंद तिलक - विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।
- श्यामश्री तिलक - इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
- अन्य तिलक - गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।
तिलक लगाने का तरीका
- जब घर में कोई अतिथि या मेहमान आ जाये तो उसको अंगूठे से तिलक लगाना चाहिए
- जब हम घर में पितृ कार्य करते है, जैसे हमने पिंड बनाये और पितरो को तिलक करना है तो उस समय हमे तर्जनी ऊँगली का प्रयोग करना चाहिए
- जब हम स्वयं को तिलक लगाये तो हमे मध्यमा ऊँगली का प्रयोग करना चाहिए
- जब हम किसी देवताओं को, ऋषियों को तिलक लगावे तब हमें अनामिका ऊँगली का प्रयोग करना चाहिए
- तांत्रिक कार्य, जारण-मारण जैसे कार्यो के लिए कनिष्क ऊँगली का प्रयोग करना चाहिए
तिलक लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें :-
- कई लोग खड़े खड़े तिलक लगवाते है, तिलक कभी खड़े होकर नही लगाना चाहिए, हमेशा बैठकर ही तिलक लगाना चाहिए
- तिलक कभी बाएं हाथ से नही लगाना चाहिए, हमेशा दाहिने हाथ से ही तिलक लगाना चाहिए
- तिलक हमेशा निचे से उपर की ओर लगाना चाहिए
- तिलक लगते समय नाख़ून नाख़ून स्पर्श ण करे
अनामिका शांति प्रोक्ता ।
मध्यमा अयुश्करी भवेत ।।
अन्गुष्ठःपुष्टिदः प्रोक्तः ।
तर्जनी मोक्ष दायिनी ।।
इसका अर्थ है की अनामिका शांति देने वाली ऊँगली है, और मध्यमा आयु को बढ़ाने वाली ऊँगली है, और अंगूठे से तिलक लगाने से पुष्टि की प्राप्ति होती है , और तर्जनी ऊँगली से तिलक लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
तिलक लगाने का मन्त्र
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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