माता वैष्णो देवी के मंदिर से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित है, इनमे पाण्डवों की कथा भी मिलती है कि वे माता जी के इस पवित्र निवास पर आए और यह भी विश्वास किया जाता है कि पाण्डवों ने माता के मंदिर का निर्माण किया।
यह भी विश्वास किया जाता है कि असुरराज हिरण्याकिश्यप के पुत्र भक्त प्रह्लाद ने भी वैष्णो माता के इस पवित्र मंदिर की यात्रा की थी। फिर भी सबसे अधिक प्रसिद्ध और सर्वाधिक जानी जाने वाली पौराणिक कथा ब्राह्मण श्रीधर की है जो त्रिकुट पर्वत की तराई में आजकल के कस्बे कटरा के निकट लगते गांव हंसली में रहता था।
श्रीधर शक्ति का परम भक्त था। यद्धपि वह बहुत ही निर्धन व्यक्ति था फिर भी उसने सपने में देवी के साथ हुई in से प्रेरित और आश्वस्त होकर विशाल भण्डारे के आयोजन की ठानी। क्योंकि माता ने एक दिन स्वयं उसे सपने में आ कर प्रेरित कर आश्वस्त किया था। भण्डारे के लिए एक शुभ दिन चुना गया और श्रीधर ने निकटवर्ती गांवों में रहने वाले लोगों को भण्डारे में आने का न्योता दे दिया। इसके बाद श्रीधर अपने पड़ोसियों एवं जान पहचान वालों के द्वार द्वार गया और उनसे आनाज, खाद्यान्न आदि मांगने लगा ताकि उसे पका कर भण्डारे में आए लोगों और अतिथियों को खिला सके।
अधिकतर लोगों ने श्रीधर के निवेदन की परवाह न की। यद्धपि कुछ ही लोगों ने श्रीधर को खाद्यन्न आदि सामान दे कर कृतार्थ किया। वास्तव में उन्होंने श्रीधर को चिढ़ाया ही था जो बिना धन साधन के भण्डारे का आयोजन करने की हिम्मत कर रहा था। ज्यों-ज्यों भंडारे का दिन निकट आता गया , भण्डारे में बुलाए गए अतिथियों को खाना खिलाने की श्रीधर की चिंता बढ़ती गई। भण्डारे के दिन से पहले की रात श्रीधर पल भर के लिए भी सो न सका।
उसने सारी रात इसी चिंता और परेशानी से जूझते हुए बिता दी कि वह भण्डारे में बुलाए अतिथियों को अपने सीमित साधनों से कैसे भोजन करवाएगा और अपने इस छोटे से स्थान में कैसे बिठाएगा। प्रातः होने तक जब वह अपनी इस समस्या का कोई संतोषजनक हल न खोज सका तो उसने अपने आप को भाग्य के हवाले कर दिया और परेशान करने वाले दिन का सामना करने के लिए उठ खड़ा हुआ। वह अपनी झोंपड़ी के बाहर पूजा करने के लिए बैठ गया। दोपहर होने तक मेहमान आने लगे उसे पूजा में पूरी तरह व्यस्त देख कर वे जहां स्थान मिला वहीं आराम करने के लिए बैठते गए। हैरानी की बात थी कि मेहमानों की बहुत बड़ी संख्या बड़े आराम से उस छोटी सी झोंपड़ी में अपनी-अपनी जगह समा गई फिर भी झोंपड़ी में काफी जगह शेष खाली रह गई थी।
जब पूजा पूरी करके श्रीधर ने अपने इर्द गिर्द मेहमानों की बहुत बड़ी संख्या को देखा तो वह आश्चर्यचकित रह गया। वह अभी सोच ही रहा था कि वह मेहमानों को कैसे कहे कि वह उन्हें भोजन करवाने में असमर्थ है कि उसे अपनी झोंपड़ी में से बाहर आती हुई वैष्णवी दिखाई दी। वैष्णवी देवी की कृपा से सभी मेहमानों को उनकी मन मर्जी का भोजन दिया गया। भैरों द्वारा पैदा की गई समस्याओं के बावजूद भण्डारा बड़ी सफलता से पूर्ण हो गया। भैरों गुरु गोरखनाथ का शिष्य था, जो भण्डारे में बुलाए गए थे।
भण्डारे के बाद श्रीधर वैष्णवी की जादुई शक्तियों के पीछे छिपे रहस्य की तह तक जाने के लिए बड़ा उत्सुक हो उठा। उसने दिन भर के रहस्यमय और चमत्कारी कार्यों के विषय में जानने के लिए वैष्णवी को ढूंढा परंतु वह उसके प्रश्नों के उत्तर देने के लिए वहां पर उपलब्ध नहीं थी। श्रीधर ने उसे बार बार पुकारा परंतु कोई नतीजा न निकला। उसने बहुत ढूंढा परंतु वैष्णवी कहीं न मिली। श्रीधर को खालीपन की अनुभूति ने घेर लिया। एक दिन वह कन्या श्रीधर के सपने में आई और उसने श्रीधर को बताया कि वह वैष्णवी देवी है।
देवी ने श्रीधर को अपनी गुफा का दृष्य दिखाया और उसे चार पुत्रों का वरदान भी दिया। श्रीधर फिर से प्रसन्न हो उठा और गुफा की तलाश में चल पड़ा। गुफा को ढूंढ कर उसने सारा जीवन देवी की पूजा में व्यतीत कर देने का निर्णय ले लिया। शीघ्र ही देवी की पवित्र गुफा की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल गई और श्रद्धालु शक्तिशाली देवी मां को श्रद्धा भेंट करने के लिए उमड़ने लगे।
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