मात्र 19 साल की उम्र में आज ही के दिन फांसी पर झूले थे खुदीराम बोस, उनके बलिदान पर उनको नमन |

आज भारत के लोग बूढ़े, बच्चे ,औरत खुली हवा में साँस ले रहे है सुकून की जिंदगी जी रहे है , मालूम है क्यों ?
चरखे की वजह से नही , 

बल्कि स्वाधीनता के लिए हजारो लोगो के कुर्बान होने के वजह से , क्रांतिकारियों के फांसी पर झूलने की वजह से| सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम बोस, मंगल पाण्डेय, अस्फकुल्लाह खां जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान के वजह से.

अगर चरखे से आजादी आती तो इनको फांसी पर झूलने की जरुरत क्या थी. उनके बलिदान की क्या जरुरत थी ,
आज हमारे देश में कुछ राजनितिक पार्टिया भारत की आजादी को अपना राजनितिक विरासत समझती है और कहती है आजादी के योगदान में केवल कांग्रेस जैसे पार्टी के नेताओ का योगदान था और किसी का योगदान नही था,
अगर इनके ही नेताओ के योगदान से भारत आजाद हुआ तो हमारे क्रांतिकारियों को फांसी पर झूलने की क्या जरुरत थी 

आपको बता दे आज ही के दिन हिंदुस्तान के वीर क्रन्तिकारी खुदीराम बोस को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया था.
स्त्रोत:-विकिपीडिया 

आइये जानते है उनके पुण्यतिथि पर उनके जीवन के बारे में |

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गाँव में पिता त्रिलोक्यानाथ के यहाँ हुआ था. उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था, बालक खुदीराम के मन में बचपन से ही ऐसी देशप्रेम जगी उसके बाद देश को ब्रिटिश राज्य से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने बीच में ही पढाई छोड़ दी और स्वाधीनता के आन्दोलन में कूद पड़े|

ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प के साथ उन्होंने अपने अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए उन्होंने अपना पहला बम एक अंग्रेज अधिकारी पर फेंका और मात्र 19 साल की उम्र में हाथ में भगवत गीता एकर हंसते हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर इतिहास रच दिया |

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम और उनके दोस्त प्रफ्फुल कुमार चाकी दोनों एक अंग्रेज न्यायधीश किग्ज्फोर्ड को मारने के उदेश्य से उसके बंगले के पास जाकर उसके बग्घी गाड़ी का इंतजार करने लगे और जैसे ही एक बग्घी आई उन्होंने बम फेंक दिया, 

हिंदुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी, कुछ दिन बाद उस बम की आवाज इंग्लैंड और यूरोप में भी सुनाई दी.

यूं तो खुदीराम ने किन्ग्ज्फोर्ड समझकर बम फेंका था मगर उस दिन किन्ग्ज्फोर्ड के समय से नही आने के कारण उस बग्घी में सवार दो यूरोपियन महिलाओ की मौत हो गयी और खुदीराम और उनके दोस्त 24 मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर विश्राम किया और वह पुलिस ने उनको घेर लिया.
उनके दोस्त प्रफ्फुल कुमार चाकी ने अपने पिस्तौल से खुद को गोली मारकर शहादत दे दी और खुदीराम पकडे गये.
खुदीराम बोस अंग्रेज सिपाहियों के गिरफ्त में.
स्त्रोत:-विकिपीडिया 

11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गयी|

उनकी शहादत से पुरे देश में देशभक्ति उमड़ पड़ी थी 

उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत लिखे गए और उनका बलिदान लोगो के मुह पर गीत के रूप में छां गया|

ऐसे भारत माता के वीर सपूत को सलाम|
जय हिन्द,
भारत माता की जय|


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