शिव महिम्न स्तोत्र pdf | shiv mahimna stotram lyrics in sanskrit

shiv mahimna stotram lyrics


शिव महिम्न स्तोत्र संस्कृत lyrics हिंदी अर्थ सहित, Shiv mahimna stotram lyrics in sanskrit hindi arth sahit

शिव महिमा स्तोत्रम शिव की भक्ति में एक संस्कृत रचना है। शिव महिमा स्तोत्रम की रचना पुष्पदंत ने की थी। शैव धर्म के सभी भजनों में लोकप्रिय यह स्तोत्र 'गंधर्व पुष्पदंत' द्वारा रचना किया गया है, शिव महिमा स्तोत्रम अपने 43 छंदों के माध्यम से भगवान शिव की महानता का वर्णन करता है।
         
'गंधर्व पुष्पदंत' देवराज इंद्र के दरबार के महत्वपूर्ण गायक थे, उनके गीत पूरे स्वर्ग में प्रचलित थी, भूलोक भी अछूता न था। जिस प्रकार राजा इंद्र के दिन अप्सराओं के बिना नहीं कटती उसी प्रकार उन्हें पुष्पदंत के शिवमय गीत परमानंद प्रदान करते थे।

इन्होंने ही प्रभासक्षेत्र में पुष्पदंतेश्वर महादेव की स्थापना की थी। तथा शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना की थी। इन्होंने जो साहित्यदान किया इसी कारण इनका नाम सनातन धर्म के इतिहास में अमिट तथा श्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया।

नाम शिव महिम्न स्तोत्र
भाषा  संस्कृत



प्रचलित कथा 

भगवान शिव के परम भक्त पुष्पदंत प्रतिदिन विधिपूर्वक शिव पूजा करते थे अत: उन्हें नानाप्रकार के पुष्प तथा बिल्वपत्र की आवश्यकता होती थी। उस समय चित्ररथ नामक प्रतापी राजा हुए यह भी भगवान शिव के भक्त थे, पूजन में इन्हें भी पुष्प तथा अन्य वस्तुओं की प्रतिदिन आवश्यकता होती थी। सुविधानुसार इन्होंने अपने राज्य में एक उद्यान का निर्माण कराया। 

वहाँ मोंगरा, सेवंतिका, कमल, कृष्णकमल, गैंदा, चम्पा, चमेली इत्यादि कई प्रकार के पुष्प थे जिन्हें देश विदेश से लाया गया था, कई हजार बिल्व के वृक्ष थे राजा प्रतिदिन यहाँ से पुष्प लेजाकर शिवपूजन करते थे। एक दिन श्री पुष्पदंत प्रभु के लिये पुष्प लेकर जा रहे थे तभी उनके नेत्र इस सुन्दर उद्यान के पुष्पों पर पड़े उन्होंने सोचा कि इतने सुंदर पुष्प व्यर्थ ही देखने के लिये रखे गए हैं, इनका उपयोग तो शिवपूजन में होना चाहिये। दूसरे दिन पुर्वान्ह में वे इसी उद्यान में आए और पुष्प तोड़ने लगे, सारे माली शयन कर रहे थे अत: किसी ने पुष्पदंत को नही देखा, उन्होंने शिव पूजा की। 

सुबह राजा चित्ररथ को मालियों ने बताया कि कोई पुष्प की चोरी कर रहा है। राजा ने कई यत्न किया परंतु वह पुष्पदंत को पकड़ नहीं सका, उसने सोंचा कि जरूर यह कोई मायावी पुरुष है। रात्रि में राजा नें उद्यान के मुख्य द्वार पर शिव निर्माल्य रखवा दिया तथा ऊपर से कपड़ा डाल दिया, प्रात: जब पुष्पदंत उद्यान में प्रवेश कर रहा था तब उनके पैर शिवनिर्माल्य वस्तुओं पर पड़ी जिससे पुष्पदंत की सभी दैवीय शक्तियाँ नष्ट हो गईं। 

पुष्पदंत अत्यंत दुखी हुए तथा उन्होने वहीं एक शिवलिंग का निर्माण किया और विधिपूर्वक पूजा की तथा शिव को प्रसन्न करने हेतु उन्होनें एक स्तोत्र का पाठ किया। शिवशंकर के पास सबके लिये दया है, दया का भंडार है तभी उनका भोले भंडारी भी नाम है। प्रभु ने पुष्पदंत को क्षमादान दिया। भगवान बोले कि तुमने जिस श्लोकसंग्रह से मेरी प्रार्थना की मुझे सर्वदा प्रिय रहेगा तथा आगे जाकर श्री शिवमहिम्न स्तोत्र के नाम से प्रचलित होगा। तुम्हारे द्वारा निर्मित यह शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाएगा, जो भी इसका दर्शनमात्र करेगा उसके सारे दुख दूर होंगे तथा स्तोत्रपाठ से वह पुण्य का भागी होगा।

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