"25 जून" भारतीय इतिहास का काला दिन, जब "इंदिरा गाँधी" के द्वारा देश में एमरजेंसी थोपी गयी थी


25 जून 1977, का वो काला दिन जब तत्कालीन राष्ट्रपति "फ़ख़रुद्दीन अली अहमद" ने तत्कालीन प्रधानमंत्री "इन्दिरा गांधी" के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी.

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने तक भारत में आपातकाल घोषित था।  स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।

इंदिरा गांधी ने चतुराई से अपने प्रतिद्वंदियों को अलग कर दिया, जिस कारण कांग्रेस विभाजित हो गयी और 1969-में दो भागों , कांग्रेस (ओ) व कांग्रेस (आर) जो इंदिरा की ओर थी, भागों में बट गयी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस सांसदों के एक बड़े भाग ने प्रधानमंत्री का साथ दिया। इंदिरा गांधी की पार्टी पुरानी कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर व आंतरिक लोकतंत्र की परंपराओं के साथ एक मजबूत संस्था थी। दूसरी और कांग्रेस (आर) के सदस्यों को जल्दी ही समझ में आ गया कि उनकी प्रगति इंदिरा गांधी और उनके परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखने पर पूरी तरह निर्भर करती है और चाटुकारिता का दिखावटी प्रदर्शित करना उनकी दिनचर्या बन गया। आने वाले वर्षों में इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में स्वयं चुने गए वफादारों को स्थापित कर सकती थीं।

1971 के आम चुनावों में, इंदिरा का "गरीबी हटाओ" का लोकलुभावन नारा लोगों को इतना पसंद आया की भारत के लोगो ने उन्हें 518 सीटो में से 352 सीटो से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर दे दी. कुछ ही दिनों में "इंदिरा गाँधी" की सरकार ने "दिसम्बर 1971" में पाकिस्तान-भारत के युद्ध में बांग्लादेश को आजाद कर दिया, उसके बाद भारत रत्न से सम्मानित हुयी, 

उसके बाद 1975 की तपती गर्मी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भारत की राजनीती में एक नया भूचाल आ गया, इंदिरा गाँधी को चुनावी धांधली में दोषी पाया गया, जिसके बाद उन्हें छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

लेकिन इंदिरा ने न्यायालय का आदेश मानने से इंकार कर दिया, और सुप्रीम कोर्ट जाने का निर्णय लिया और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी, आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।" आपातकाल लागू होते ही कई विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गयी, जिसमे जय प्रकाश नारायण और अटल जी जैसे नेता शामिल थे ।

इंदिरा गांधी और राज नारायण विवाद

दरसअल देश मे इमरजेंसी की पटकथा 1971 के लोकसभा चुनाव में ही लिख दी गयी थी, इंदिरा रायबरेली से उम्मीदवार थी और उनक विपक्षी उम्मीदवार "राज नारायण" थे , इंदिरा चुनाव जीत गयी । चुनाव हारने के चार साल बाद राज नारायण अदालत में गए, उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं।

आपातकाल में RSS की भूमिका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा यह सरकार के विरुद्ध बड़ा आंदोलन करने की क्षमता रखता है। पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया। आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया।

सिखों द्वारा विरोध

सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने "कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति" का विरोध करने का संकल्प किया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया था जिसे "लोकतंत्र की रक्षा का अभियान" के रूप में जाना जाता है।

विरोध के स्वर को देखते हुए इंदिरा ने 1977 में लोकसभा को भंग कर दी और चुनाव कराने की घोषणा कर दी । चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ।

ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।

नई सरकार बनी, लेकिन ये भी मात्र दो साल तक ही चल पाई, और अंर्तकलह के कारण सरकार गिर गयी ।

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