महाभारत युद्ध में कौरव और पांडवों का युद्ध चल रहा था। कौरव सेना के कई महा यौद्धा मारे जा चुके थे। इसके बाद अर्जुन और कर्ण का आमना-सामना हुआ, उनका युद्ध चल रहा था। तभी कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया।
कर्ण रथ से उतरा और रथ का पहिया निकालने की कोशिश करने लगा। उस समय अर्जुन ने अपने धनुष पर बाण चढ़ा रखा था। कर्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम कायरों की तरह व्यवहार मत करो, एक निहत्थे पर प्रहार करना तुम्हारे जैसे यौद्धा को शोभा नहीं देता है। मुझे रथ का पहिया निकालने दो, फिर मैं तुमसे युद्ध करूंगा। कुछ देर रुको।
ये बातें सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा कि जब कोई अधर्मी संकट में फंसता है, तभी उसे धर्म की याद आती है। जब द्रौपदी का चीर हरण हो रहा था, जब द्युत क्रीड़ा में कपट हो रहा था, तब किसी ने धर्म का साथ नहीं दिया। वनवास के बाद भी पांडवों को उनका राज्य न लौटाना, 16 साल के अकेले अभिमन्यु को अनेक यौद्धाओं ने घेरकर मार डाला, ये भी अधर्म ही था। उस समय कर्ण का धर्म कहां था? श्रीकृष्ण की बातें सुनकर कर्ण निराश हो गया था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम मत रुको और बाण चलाओ।
कर्ण को धर्म की बात करने का अधिकार नहीं है। इसने हमेशा अधर्म का ही साथ दिया है। अर्जुन ने तुरंत ही कृष्ण की बात मानकर कर्ण पर प्रहार कर दिया। बाण लगने के बाद श्रीकृष्ण ने कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा भी की थी। कर्ण ने हर बार दुर्योधन के अधार्मिक कामों में सहयोग किया था, इसी वजह से वह अर्जुन के हाथों मारा गया।
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